Sunday, March 26, 2017

      आधी आबादी है नारी,आधी संसद मे आने दो

दुनिया के पुरुषों मत समझो
     नारी हूं तो झुक जाउंगी 
समझौते,त्याग के पन्ने पर,मेरी जीवन गाथा लिखी गयी 
    जौहर मेरा ही सदा हुआ 
बन सती आग मे मै ही जली
   अग्निपरीक्षा अस्मत की,हर काल मे मेरी होती रही 
कहते हो स्वयं को' सर्वश्रेष्ठ'
      नारी को 'अबला' नाम दिया 
उसके प्रेम,समर्पण को,अपना अधिकार समझते हो 
    अस्तित्व नही समझा उसका 
ईश्वर का इच्छित फल समझा 
      सदियोंं का शोषण खतम हो रहा 
क्यों तुमको स्वीकार नही?
    क्यों बराबरी से डरते हो
क्या खुद पे तुम्हे विश्वास नही?
   गूंगी गुड़िया अब बोल रही 
क्यों शब्द तुम्हारे खत्म हुए?
   तैंतीस फीसदी नारी को,पद देने मे हिचकते हो 
आधा अधिकार वो मांग न ले
   कानून बदलते फिरते  हो 
नारी की लगन और मेहनत से 
     पुरुषों! इतना क्यों डरते हो?
नारी पा जाये ऊंचा पद,चरित्र टटोलने लगते हो 
    निन्दा का अवसर हाथ लगे,हर समय घात मे रहते हो 
नारी जिस सीढ़ी पर चढती है,उसे धीरे-धीरे हिलाते हो
      तुमसे आगे वह जा न सके,राहों मे कांटे बिछाते हो
नारी जब दौड़ लगाती है,पुरुषोंं तुम क्यों थक जाते  हो
   पत्नी,मां,बेटी कहते हो,अधिकार नही पर देते हो 
नारी शक्ति पर भाषण दे,तुम नारी को ही ठगते हो 
  पत्थर की नारी देवी है,कहकर शीश झुकाते हो 
हाड़-मांस की नारी से,पूजा खुद की करवाते हो
   युग बदला है,तुम भी बदलो,अस्तित्व को अब स्वीकार करो
तानो,अपमानों से इसको कमज़ोर बताना बन्द करो
  शिक्षा,रक्षा और अन्तरिक्ष मे,इसने बाजी मारी है 
बुध्दि,बल,सहनशीलता मे पुरुषों! तुम पर यह भारी है 
   अपने से कम इसे मत आंको,पंखों को इसके मत काटो
देवी का दर्जा नही इसे,बस' नारी'ही बन जाने दो
   देकर अधिकार सभी इसके,इसेआगे कदम बढाने दो 
लोकतंत्र के आंगन मे,नारी को दौड़ लगाने दो 
    सड़क से लेकर संसद तक,अवरोध बिना उसे जाने दो 
राज-काज मे नारी भी,सहभाग बने पुरषों की तरह 
    आधी आबादी है नारी,आधी संसद मे आने दो 
शहीद का धर्म

हिन्दू न कहो मुस्लिम न कहो,पहचान मेरी मानव है
   न मैने पढी है गीता कभी,न मैंने रटी है आयत
न व्रत मंगल का मै रखूं,रमज़ान मे रखूं न रोजा
   धर्म है मेरा मानवता,करता मानव की सेवा 
गेरुआ वस्त्र पहनकर न माथे पर तिलक लगाऊं
   उजले वस्त्र पहनकर न पढ़ने अजान मै जाऊं
मै सैनिक हूं सीमा का,पूजा मै देश की करता
   देश की रक्षा को कहता,अपनी कुरान और गीता 
देश के दुश्मन घात लगाए,गली-गली बैठे हैं
   अन्धकार का लिए इरादा,द्वार के पार खड़े हैं
जाति नही मेरा धर्म नही,मै वतन को मजहब कहता
  मन्दिर मे नही मस्जिद मे नही,मुझे कण-कण मे रब दिखता 
नही है जीवन मोह मुझे,न मरने से डरता हूं
  देश की खातिर जीता हूं,तो सैनिक कहलाता हूं
सब कहते हैंं 'शहीद"मुझे,जब देश पे मर जाता हूं
  अभिमान देश का मुझसे है,ईमान को मै रखता हूं
देश की सीमा को ही मै,अब अपना घर कहता हूं
  नही मै जाता काशी मे,न काबा मे जाता हूं
चर्च और गुरुद्वारे के द्वारेे पर रह जाता हूं
  वतन की मिट्टी मे मुझको दिखता है अपना तीरथ
यीशु,अल्लाह,भगवान् नही,है वतन ही मेरा ईश्वर । 
                  

Saturday, March 25, 2017

हार से ही जीत है

हार से ही जीत है


कौन कहता है सफलता जिन्दगी का गीत है

  असफल हुआ न जो कभी,मानव नही वह पूर्ण है

कौन कहता है कि जीवन खुशियों का संगीत है

  गम नही जीवन मे जिसके,मानव वह अपूर्ण है

गिर गए जो राह मे,तो क्या हुआ उठ जाओ तुम

  जीवन का पथ कांटों भरा,कांटों से न घबराओ तुम

छिप गया है आज सूरज,क्या हुआ निकलेगा कल

   कितनी भी काली रात हो,हर रात का है दिन ही हल

छोटा बहुत जीवन का पथ,न देख दुनिया को तू चल

  क्या चाहता है मन तेरा,तू पहले अपने मन को पढ़

एक छोटा सा कदम,मंजिल तलक ले जायेगा

  जो चल दिए कांटों पर तुम,पथ खुद-ब-खुद बन जायेगा

जिन्दगी ने जो दिया,हंसकर उसे स्वीकार लो

   मेहनत करो इतनी,तुम्हारे तन मे जितनी जान हो

माना कि मंजिल दूर है,इसे हौसलों से कम करो

 पक्के इरादे से सफर के विघ्न को तुम तोड़ दो

हार पर न तुम डिगो,असफलता पर न तुम  रुको

जो न मिला,हासिल उसे दुगने परिश्रम से करो

 संकल्प हो,एक लक्ष्य हो,मेहनत के संग-संग धैर्य हो

ये हो नही सकता रे मानव!भाग्य मे हलचल न हो

 लोगों का कहना काम है,न उनकी बातों मे पड़ो

क्या दिल तुम्हारा कह रहा,ठहरो,सुनो,वो ही करो

  भाग्य तो एक शब्द है,तुम कर्म से इसे अर्थ दो

हिम्मत,लगन,मेहनत से तुम,तकदीर अपनी खुद लिखो